जूतों की तो बात ही छोड़ो, अब तो पैर भी टूटने लगे हैं।
दिन गुज़रता है कैसे तो बोहत दूर की बात है,
अगला कदम कैसे चलूँगा यही खौफ पीछा नही छोड़ता।
खचाखच भरे सुनसान से रस्ते, गुमराह सा घूमता मैं।
सर पे चौन्द्याता सा सूरज, सूखे हल्क गुज़ारिश करता सा मैं।
लोगों के बोलते मुँह पर मुझ तक न पहुँचती आवाजें।
हिम्मत बाकि है अभी भी पर जिस्म धोखा दे रहा है।
ढगर पे चलते आज इस मुकाम आन खड़ा हूँ,
की हर बात बेमानी सी लगती है।
मेरे मालिक ने मेरे लिये शायद यही हश्र तय किया है।
रद्दी वाले के ठेले पे पड़ी पुरानी अख़बारों के पुलिंदे सा लगने लगा हूँ ख़ुद को।
जूतों की तो बात ही छोड़ो, अब तो पैर भी टूटने लगे हैं।
Thursday, September 10, 2009
Friday, August 21, 2009
कब्रों का शहर
मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
इनके पीछे चलते मैं इस कब्रों के शहर में चला आया हूँ।
तुम कब से दफ़न हो यहाँ।
यहाँ सब कुछ मेरा है।
यह जगह, यहाँ के कारिंदे, यह कब्रें और कब्रों में बंद लाशें।
यहाँ तुम आज भी मेरे हो।
तुम्हारी हर बात, हर मुस्कान, हर आंसू-
जो कभी तुमने मुझे नज़र किये थे,
आज भी यादों के लिबास में दफन हैं यहाँ।
मेरी ज़र्खरीद हैं ये यादें...सिस्किओं से कीमत जो चुकाई है मैंने।
लड़खड़ाते गुज़रते, दिन जब रात की चौखट पे आता है,
जब रात बसर करने का फ़िक्र मुझे सताने लगता है।
जब नशा दर्द का सर से उतरने लगता है।
मैं इस कब्रिस्तान में सजी तेरी महफिल में चला आता हूँ।
बड़ा सकून है यहाँ। यहाँ आज भी तुम मेरे ही हो।
हर कब्र यहाँ की मैं हूँ, हर दफन लाश तुम।
हर लम्हा मुझमें समाये रहते हो तुम यहाँ।
मेरा राज चलता है इस कब्रों के शहर पर।
मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
इनके पीछे चलते मैं इस कब्रों के शहर में चला आया हूँ।
तुम कब से दफ़न हो यहाँ।
यहाँ सब कुछ मेरा है।
यह जगह, यहाँ के कारिंदे, यह कब्रें और कब्रों में बंद लाशें।
यहाँ तुम आज भी मेरे हो।
तुम्हारी हर बात, हर मुस्कान, हर आंसू-
जो कभी तुमने मुझे नज़र किये थे,
आज भी यादों के लिबास में दफन हैं यहाँ।
मेरी ज़र्खरीद हैं ये यादें...सिस्किओं से कीमत जो चुकाई है मैंने।
लड़खड़ाते गुज़रते, दिन जब रात की चौखट पे आता है,
जब रात बसर करने का फ़िक्र मुझे सताने लगता है।
जब नशा दर्द का सर से उतरने लगता है।
मैं इस कब्रिस्तान में सजी तेरी महफिल में चला आता हूँ।
बड़ा सकून है यहाँ। यहाँ आज भी तुम मेरे ही हो।
हर कब्र यहाँ की मैं हूँ, हर दफन लाश तुम।
हर लम्हा मुझमें समाये रहते हो तुम यहाँ।
मेरा राज चलता है इस कब्रों के शहर पर।
मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
Friday, August 14, 2009
सौदा
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
अंधेरे छा रहे है देख उन चरागों पर,
जलते थे जो देख चेहरा बस हसीन तेरा।
देख हर तरफ़ है धुआं ही छा रहा,
है जल रहा आज रंग था जो बेहतरीन तेरा।
खून मिट गया अब नज़र भी नही आता,
हाथ हो गया पर कैसे यूँ रंगीन तेरा।
लो देखते-देखते है क़यामत आ गई,
क्यूँ चेहरा ज़र्द, उड़ा रंग है नाज़नीन तेरा।
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
अंधेरे छा रहे है देख उन चरागों पर,
जलते थे जो देख चेहरा बस हसीन तेरा।
देख हर तरफ़ है धुआं ही छा रहा,
है जल रहा आज रंग था जो बेहतरीन तेरा।
खून मिट गया अब नज़र भी नही आता,
हाथ हो गया पर कैसे यूँ रंगीन तेरा।
लो देखते-देखते है क़यामत आ गई,
क्यूँ चेहरा ज़र्द, उड़ा रंग है नाज़नीन तेरा।
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
Thursday, August 13, 2009
थोड़ी सी खुशी
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
दूर तक सुनाई पड़ती है बस चुप्पी ही,
मेरी भी आवाज़ कोई तो सुनी कर दे।
इस सन्नाटे में कोई मुझे भी पुकार ले,
चुभती धूप को कोई मद्धम चांदनी कर दे।
हर तरफ़ नज़र आते हैं बस वीराने ही,
ठहरे पल मेरे कोई अब रवानी कर दे।
बस एक बार कोई हाथ दे संभाल ले,
मेरी भी खुशी कोई एक बार सौगुनी कर दे।
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
दूर तक सुनाई पड़ती है बस चुप्पी ही,
मेरी भी आवाज़ कोई तो सुनी कर दे।
इस सन्नाटे में कोई मुझे भी पुकार ले,
चुभती धूप को कोई मद्धम चांदनी कर दे।
हर तरफ़ नज़र आते हैं बस वीराने ही,
ठहरे पल मेरे कोई अब रवानी कर दे।
बस एक बार कोई हाथ दे संभाल ले,
मेरी भी खुशी कोई एक बार सौगुनी कर दे।
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मेरे साथ निगाहें जो मिलाई थी तुमने,
वो मंज़र निगाह भूल न पाये उसका क्या?
तुम मेरी बांहों में और मैं चाँद पर,
वो याद मेरे दिल से न जाये उसका क्या?
कितनी शामें जो बीताई थी साथ में,
वक्त तुम बिन गुज़र न पाये उसका क्या?
आशनाई तुमसे है बोहत महंगी पड़ी,
दिल मेरा अब धड़क न पाये उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मेरे साथ निगाहें जो मिलाई थी तुमने,
वो मंज़र निगाह भूल न पाये उसका क्या?
तुम मेरी बांहों में और मैं चाँद पर,
वो याद मेरे दिल से न जाये उसका क्या?
कितनी शामें जो बीताई थी साथ में,
वक्त तुम बिन गुज़र न पाये उसका क्या?
आशनाई तुमसे है बोहत महंगी पड़ी,
दिल मेरा अब धड़क न पाये उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
जुगनी चली जालंधर
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली।
जुगनी कुड़ी बड़ी मतवाली,जैसे भरी प्रेम दी प्याली।
जुगनी ढोल दी है ढुग-ढुग,चलदे ट्रक्टर दी है टुक-टुक।
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, ओ रब्बा मेरेया जुगनी।
ओ वीर मेरेया वे जुगनी बह गई है,दिल सब दा खींच के ले गई है।
ओ जुगनी चली जालंधर, (जुगनी) जुगनी चली जालंधर।
जुगनी आ पहुँची जालंधर, खाते-पीते घर दे अन्दर,
जहाँ एक से एक सिकंदर, जुगनी अपनी मस्त क़लन्दर
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, (जुगनी) ओ रब्बा मेरेया ओ जुगनी,
वेखी वेखी सी लगदी, जुगनी सब दे दिल नू फब्दी है।
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली जालंधर।
जुगनी कुड़ी बड़ी मतवाली,जैसे भरी प्रेम दी प्याली।
जुगनी ढोल दी है ढुग-ढुग,चलदे ट्रक्टर दी है टुक-टुक।
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, ओ रब्बा मेरेया जुगनी।
ओ वीर मेरेया वे जुगनी बह गई है,दिल सब दा खींच के ले गई है।
ओ जुगनी चली जालंधर, (जुगनी) जुगनी चली जालंधर।
जुगनी आ पहुँची जालंधर, खाते-पीते घर दे अन्दर,
जहाँ एक से एक सिकंदर, जुगनी अपनी मस्त क़लन्दर
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, (जुगनी) ओ रब्बा मेरेया ओ जुगनी,
वेखी वेखी सी लगदी, जुगनी सब दे दिल नू फब्दी है।
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली जालंधर।
Thursday, August 6, 2009
मैं कब सास बनूँगी
जय नारी, जय नारी, नारी नारी जय नारी।
मैं हूँ ऐसी नारी जो है अबला बेचारी,
जब से बनी हूँ सासू सोचा लाइफ होगी धांसू,
जो मेरे साथ हुआ है वो बहू के साथ करूंगी,
पर ये जो मेरी सासू देती है आँख में आंसू,
बोले बन नही सकती तू सास जब तक हूँ मैं तेरे पास।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बात मेरी तू मान गद्दी पे न दे ध्यान,
माना बनी हैं तू सास फ़िर भी सत्ता मेरे पास।
रहूंगी याद दिलाती मैं दिया हूँ तू है बाती,
पल्लू बाँध ले मेरी बात, तू बहू है मैं हूँ तेरी सास।
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
मैं हूँ ऐसी नारी जो है अबला बेचारी,
जब से बनी हूँ सासू सोचा लाइफ होगी धांसू,
जो मेरे साथ हुआ है वो बहू के साथ करूंगी,
पर ये जो मेरी सासू देती है आँख में आंसू,
बोले बन नही सकती तू सास जब तक हूँ मैं तेरे पास।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बात मेरी तू मान गद्दी पे न दे ध्यान,
माना बनी हैं तू सास फ़िर भी सत्ता मेरे पास।
रहूंगी याद दिलाती मैं दिया हूँ तू है बाती,
पल्लू बाँध ले मेरी बात, तू बहू है मैं हूँ तेरी सास।
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
Tuesday, July 28, 2009
पुरानी भड़ास
राह जिनकी ताकता रहा जिंदगी भर मैं,
वो देख कर भी मुझको अन्देखा कर गये।
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ऐ जिंदगी तेरी खोज में मैंने क्या-क्या सितम नही सहे,
मिली भी तो राह में कह दिया मैं वो नही, कोई और हूँ।
--------------------------------------------------
यही किनारा नही,
परे हैं और जहाँ बोहत।
---------------------
क्या पूछोगे तुम क्या बतायेंगे हम,
बंद किताब है तुम इसे बंद ही रहने दो।
-----------------------------------
वो पहुंचे जब, मैं रहा नही, मेरी क्या खता है इसमे,
इंतज़ार तो मैंने था सदियों तक किया।
-----------------------------------
मान लो तुम बात मेरी मुझे और मत सताओ,
गर पलट गया तेरी हस्ती का पता भी न मिलेगा।
----------------------------------------------
हाथ में तो मेरे, कितने ही कतल थे,
हालात ने मेरे मगर मजबूर कर दिया।
-----------------------------------
जानता हूँ कि बस के मेरे है नही ये बात,
फ़िर खामख्वाह दोखा क्यूँ मैं ख़ुद को दे रहा हूँ।
-------------------------------------------
यह गिले-शिकवे मुझसे मत किया करो तुम,
सोच-समझ की कुवत मुझमें बची नही है।
--------------------------------------
पहचान चाहे नही मुझे मंजिल की,
यकीन है मगर रास्ता यही वो है।
------------------------------
मेरी कब्र का पता तुम्हे कैसे कोई बताये,
मेरे घर का पता तो कभी पूछा नही किसी ने।
-----------------------------------------
आज किस्मत ने मेरी मुझे गिराया है वहाँ,
जहाँ रास्ता ही मुझे कोई नज़र नही आता।
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आग के बवंडर में चाहे घिर गया हूँ मैं,
दिल कहता है मुझे भी बचा लेगा कोई।
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ऐसी बात नही कि मालूम नही क्या होने वाला है,
धोखा खाने कि मगर मुझे आदत सी हो गई है।
------------------------------------------
वो देख कर भी मुझको अन्देखा कर गये।
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ऐ जिंदगी तेरी खोज में मैंने क्या-क्या सितम नही सहे,
मिली भी तो राह में कह दिया मैं वो नही, कोई और हूँ।
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यही किनारा नही,
परे हैं और जहाँ बोहत।
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क्या पूछोगे तुम क्या बतायेंगे हम,
बंद किताब है तुम इसे बंद ही रहने दो।
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वो पहुंचे जब, मैं रहा नही, मेरी क्या खता है इसमे,
इंतज़ार तो मैंने था सदियों तक किया।
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मान लो तुम बात मेरी मुझे और मत सताओ,
गर पलट गया तेरी हस्ती का पता भी न मिलेगा।
----------------------------------------------
हाथ में तो मेरे, कितने ही कतल थे,
हालात ने मेरे मगर मजबूर कर दिया।
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जानता हूँ कि बस के मेरे है नही ये बात,
फ़िर खामख्वाह दोखा क्यूँ मैं ख़ुद को दे रहा हूँ।
-------------------------------------------
यह गिले-शिकवे मुझसे मत किया करो तुम,
सोच-समझ की कुवत मुझमें बची नही है।
--------------------------------------
पहचान चाहे नही मुझे मंजिल की,
यकीन है मगर रास्ता यही वो है।
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मेरी कब्र का पता तुम्हे कैसे कोई बताये,
मेरे घर का पता तो कभी पूछा नही किसी ने।
-----------------------------------------
आज किस्मत ने मेरी मुझे गिराया है वहाँ,
जहाँ रास्ता ही मुझे कोई नज़र नही आता।
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आग के बवंडर में चाहे घिर गया हूँ मैं,
दिल कहता है मुझे भी बचा लेगा कोई।
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ऐसी बात नही कि मालूम नही क्या होने वाला है,
धोखा खाने कि मगर मुझे आदत सी हो गई है।
------------------------------------------
रहनुमाई
आज चाँदनी मेरे दर पे आई है।
ख़ुद चाँद ने की रहनुमाई है।
दरवाज़े पे कोई दस्तक है दे रहा,
फ़िर वक्त मुझे आवाज़ लगाई है।
दिल मुद्दत से था बंद हो चुका,
आज सीने फ़िर धड़कन समायी है।
अर्श आज मुझे सजदा है कर रहा,
मेरी किस्मत ऐसे रौशनाई है।
हाथ थामे कोई है साथ ले चला,
जाने आँख फ़िर क्यूँ भर आई है।
ख़ुद चाँद ने की रहनुमाई है।
दरवाज़े पे कोई दस्तक है दे रहा,
फ़िर वक्त मुझे आवाज़ लगाई है।
दिल मुद्दत से था बंद हो चुका,
आज सीने फ़िर धड़कन समायी है।
अर्श आज मुझे सजदा है कर रहा,
मेरी किस्मत ऐसे रौशनाई है।
हाथ थामे कोई है साथ ले चला,
जाने आँख फ़िर क्यूँ भर आई है।
Wednesday, July 22, 2009
काटा नाम मेरा
काटा नाम मेरे नाम से ये और बात है,
नही था वो मेरा नाम ये न झुठलाओ।
जो किया मेरे साथ इनायत है कम नही,
मोहाब्बत के मायने मुझे न समझाओ।
मेरे ख़त उनमे बंद तेरी यादों के फूल,
मुझे लौटादो मेरे ही साथ दफनाओ।
मुह फेर लिया मुझसे है यह गिला नही,
मुझपे धोखेबाज़ी का इलज़ाम न लगाओ।
मर कर कोई वापिस नही आता,
मेरी कब्र पर न आब आँसू बहाओ।
काटा नाम मेरे नाम से ये और बात है,
नही था वो मेरा नाम ये न झुठलाओ।
नही था वो मेरा नाम ये न झुठलाओ।
जो किया मेरे साथ इनायत है कम नही,
मोहाब्बत के मायने मुझे न समझाओ।
मेरे ख़त उनमे बंद तेरी यादों के फूल,
मुझे लौटादो मेरे ही साथ दफनाओ।
मुह फेर लिया मुझसे है यह गिला नही,
मुझपे धोखेबाज़ी का इलज़ाम न लगाओ।
मर कर कोई वापिस नही आता,
मेरी कब्र पर न आब आँसू बहाओ।
काटा नाम मेरे नाम से ये और बात है,
नही था वो मेरा नाम ये न झुठलाओ।
मसायल
कितने मसायल दुनिया के, मेरा बस एक,
मोहब्बत बस मोहब्बत, तुमसे मैं करता हूँ।
हर साँस आये तेरे नाम ही के बाद,
ख्यालों में भी तेरे ही मैं रँग भरता हूँ।
कितने हुस्न मुझपे भी जान देते हैं,
और मैं हूँ कि तुम ही पे मरता हूँ।
लाख बार दिल ने है यह इक़बाल किया,
इज़हार तुमसे करने से मैं फ़िर क्यूँ डरता हूँ।
कितने मसायल दुनिया के, मेरा बस एक,
मोहब्बत बस मोहब्बत, तुमसे मैं करता हूँ।
मोहब्बत बस मोहब्बत, तुमसे मैं करता हूँ।
हर साँस आये तेरे नाम ही के बाद,
ख्यालों में भी तेरे ही मैं रँग भरता हूँ।
कितने हुस्न मुझपे भी जान देते हैं,
और मैं हूँ कि तुम ही पे मरता हूँ।
लाख बार दिल ने है यह इक़बाल किया,
इज़हार तुमसे करने से मैं फ़िर क्यूँ डरता हूँ।
कितने मसायल दुनिया के, मेरा बस एक,
मोहब्बत बस मोहब्बत, तुमसे मैं करता हूँ।
ग़ज़ल
कई कुछ लिखता हूँ मैं फ़िर मिटाता हूँ,
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।
आओ कोई तो पूछो मेरे दिल का हाल मुझसे,
हाल-ऐ-दिल मैं दिखाया जाना चाहता हूँ।
बड़ा दे हाथ कोई दिल में कुछ जगह दे दे,
थोड़ा मैं भी अपनाया जाना चाहता हूँ।
न मारो पत्थर नफरत के चोट लगती है,
प्यार मैं भी जताया जाना चाहता हूँ।
चल यार दिल आज उस मुकाम को ढूंढे,
जहाँ ख़ुद को मैं पाया जाना चाहता हूँ।
कई कुछ लिखता हूँ मैं फ़िर मिटाता हूँ,
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।
आओ कोई तो पूछो मेरे दिल का हाल मुझसे,
हाल-ऐ-दिल मैं दिखाया जाना चाहता हूँ।
बड़ा दे हाथ कोई दिल में कुछ जगह दे दे,
थोड़ा मैं भी अपनाया जाना चाहता हूँ।
न मारो पत्थर नफरत के चोट लगती है,
प्यार मैं भी जताया जाना चाहता हूँ।
चल यार दिल आज उस मुकाम को ढूंढे,
जहाँ ख़ुद को मैं पाया जाना चाहता हूँ।
कई कुछ लिखता हूँ मैं फ़िर मिटाता हूँ,
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।
Monday, July 13, 2009
बेगाने
समय बीत गये, रातें गुज़र गई, वक्त निकल गये।
बात निकली उस वक्त की जो कभी था, और फ़िर...खो गया।
कई बार ऐसा लगा जैसे सब ठीक हो।
जैसे सब पहले जैसा हो, कुछ भी न बदला हो...पर ऐसा है नही।
वक्त बहता रहा, अर्से बीतते गये, टुकड़े बिखरते रहे।
लोग बदल गये, शायद मैं भी बदल गया।
कुछ अपनी सी लगने वाली आवाजें सुनाई पड़ी...
लगा जैसे अब भी कोई इन्तज़ार कर रहा है।
मुझे अभी भी चाहता है। पर काश...
रास्ते कुछ ज़्यादा नही बदले पर,
पर अब मंजिलों ने शायद अपनी जगह बदल ली है।
सन्नाटा बोहत हो चला है,
यह चुप्पी भी अच्छी लगने लगी है।
अब डर नही लगता...
मैं ख़ुद जो डर बन गया हूँ।
ज़िक्र निकला अफ़्सानो का तो मुझे अपनी कहानी याद आ गयी।
क्या सुहाना मन्ज़र था और फ़िर कुछ नही रहा।
सब ख़त्म हो गया। बचा तो सिर्फ़ अफ़सोस।
वैसे सुबह हो चली है।
फ़िर सवेरा होगा, फ़िर से वही लोग मिलेंगे।
कुछ अपना जतायेंगे और कुछ, खैर...
कुछ अच्छा समां गुज़र गया। रात बीत गयी।
सारे फ़िर से बेगाने हो गये।
बात निकली उस वक्त की जो कभी था, और फ़िर...खो गया।
कई बार ऐसा लगा जैसे सब ठीक हो।
जैसे सब पहले जैसा हो, कुछ भी न बदला हो...पर ऐसा है नही।
वक्त बहता रहा, अर्से बीतते गये, टुकड़े बिखरते रहे।
लोग बदल गये, शायद मैं भी बदल गया।
कुछ अपनी सी लगने वाली आवाजें सुनाई पड़ी...
लगा जैसे अब भी कोई इन्तज़ार कर रहा है।
मुझे अभी भी चाहता है। पर काश...
रास्ते कुछ ज़्यादा नही बदले पर,
पर अब मंजिलों ने शायद अपनी जगह बदल ली है।
सन्नाटा बोहत हो चला है,
यह चुप्पी भी अच्छी लगने लगी है।
अब डर नही लगता...
मैं ख़ुद जो डर बन गया हूँ।
ज़िक्र निकला अफ़्सानो का तो मुझे अपनी कहानी याद आ गयी।
क्या सुहाना मन्ज़र था और फ़िर कुछ नही रहा।
सब ख़त्म हो गया। बचा तो सिर्फ़ अफ़सोस।
वैसे सुबह हो चली है।
फ़िर सवेरा होगा, फ़िर से वही लोग मिलेंगे।
कुछ अपना जतायेंगे और कुछ, खैर...
कुछ अच्छा समां गुज़र गया। रात बीत गयी।
सारे फ़िर से बेगाने हो गये।
Tuesday, July 7, 2009
मुसाफिर
तालाब के ठहरे पानी में अपने अक्स को देखकर पता चला ख़ुद में आयी तब्दीलियों का।
हवा के झोंके से मालूम पड़ा कि बीते अर्से में वक्त की रफ्तार काफी बड़ी रही।
हाँ, मंज़र काफी बदला सा नज़र आता है।
वही मैं, जो कभी दिन के उजाले में नज़र नही आता था,
आज सिखर दोपहर लोगों से हँसते, बातें करते दिखायी दिया।
वाकये काफी कुछ बदला है।
महताब के दीवाने की आफ़ताब से दिल्लगी ।
बड़ी अजीब सी कैफ़ियत है - न खुशी है न गम।
एहसास है इस बात का की रास्ते दूर तक जाते हैं।
बारिश की बूंदों के तालाब के पानी में गिरने से बनते सुरों ने मुझे बताया,
कि मुझ तक पोहंचने तक हर समय, हर घड़ी वो अपनी मंजिल पाये हुए थे।
ये सफर ही उनकी मंजिल थी।
पर मैं तो फिर भी भटक रहा हूँ, एक मंजिल कि तलाश में।
पता सिर्फ़ ख़ुद के मुसाफिर होने का है।
मुसाफिर, जिसे बोहत दूर जाना है।
बरसती बारिश में मैं पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो ख़ुद को कहीं दूर जाते देख रहा हूँ।
वो मैं - जो मुझसे दूर गया, मेरी ओर पलट के मुस्कुराया और आँखों से ओझल हो गया।
बोहत दूर जाना है उसे। बोहत दूर।
हवा के झोंके से मालूम पड़ा कि बीते अर्से में वक्त की रफ्तार काफी बड़ी रही।
हाँ, मंज़र काफी बदला सा नज़र आता है।
वही मैं, जो कभी दिन के उजाले में नज़र नही आता था,
आज सिखर दोपहर लोगों से हँसते, बातें करते दिखायी दिया।
वाकये काफी कुछ बदला है।
महताब के दीवाने की आफ़ताब से दिल्लगी ।
बड़ी अजीब सी कैफ़ियत है - न खुशी है न गम।
एहसास है इस बात का की रास्ते दूर तक जाते हैं।
बारिश की बूंदों के तालाब के पानी में गिरने से बनते सुरों ने मुझे बताया,
कि मुझ तक पोहंचने तक हर समय, हर घड़ी वो अपनी मंजिल पाये हुए थे।
ये सफर ही उनकी मंजिल थी।
पर मैं तो फिर भी भटक रहा हूँ, एक मंजिल कि तलाश में।
पता सिर्फ़ ख़ुद के मुसाफिर होने का है।
मुसाफिर, जिसे बोहत दूर जाना है।
बरसती बारिश में मैं पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो ख़ुद को कहीं दूर जाते देख रहा हूँ।
वो मैं - जो मुझसे दूर गया, मेरी ओर पलट के मुस्कुराया और आँखों से ओझल हो गया।
बोहत दूर जाना है उसे। बोहत दूर।
चंद शेर
इसके साथ, कभी उसके साथ, कभी साथ-साथ, कभी दूर दूर,
ऐसे गुज़ारी जिंदगी, मैंने बेच बेच के।
***************************
हाथ थामे है कोई साथ ले चला,
दिल धड़कती फिर भी तन्हाई है।
************************
तुम्हे पाने की तम्मना और न पाने का ग़म,
इन हादसों ने है मुझे शायर बना दिया।
*****************************
क्या गिला करूँ लोगों ने न की जो परवाह मेरी,
जब अपनों ने ही नज़रंदाज़ कर दिया मुझे।
********************************
क्या जानोगे मिजाज़ फकीरों का,
इश्क जानते नही अगर क्या चीज़ है।
***************************
हाथ तो बोहत बड़े मुझे बचाने को, लेकिन,
एक वो ही न था जो बचा सकता था दरअसल।
**********************************
करने आ गये लोग मुझसे हज़ारों शिकवे,
मेरी एक फरयाद न इन्हे पर सुनाई दी थी।
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इंतज़ार तो तेरा मैं अब भी कर रहा हूँ,
और बात है आँखों अब नज़र नही आता।
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वक्त का तकाज़ा है की महफिलें भी हैं वीरान सी लगने लगी,
बाकि दौर तो वो भी गुज़रा है जब तन्हाई भी महफिल सी लगती थी।
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कुछ ऐसा हुआ वाकया, बताऊँ क्या मैं यारो,
मुझे रास्ता मालूम न था, और मंजिल आ गई।
**********************************
अफ़सोस कि अहसास मुझे उस वक्त हुआ,
वापसी का रास्ता ही जब बंद हो चुका था।
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ऐसे गुज़ारी जिंदगी, मैंने बेच बेच के।
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हाथ थामे है कोई साथ ले चला,
दिल धड़कती फिर भी तन्हाई है।
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तुम्हे पाने की तम्मना और न पाने का ग़म,
इन हादसों ने है मुझे शायर बना दिया।
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क्या गिला करूँ लोगों ने न की जो परवाह मेरी,
जब अपनों ने ही नज़रंदाज़ कर दिया मुझे।
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क्या जानोगे मिजाज़ फकीरों का,
इश्क जानते नही अगर क्या चीज़ है।
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हाथ तो बोहत बड़े मुझे बचाने को, लेकिन,
एक वो ही न था जो बचा सकता था दरअसल।
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करने आ गये लोग मुझसे हज़ारों शिकवे,
मेरी एक फरयाद न इन्हे पर सुनाई दी थी।
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इंतज़ार तो तेरा मैं अब भी कर रहा हूँ,
और बात है आँखों अब नज़र नही आता।
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वक्त का तकाज़ा है की महफिलें भी हैं वीरान सी लगने लगी,
बाकि दौर तो वो भी गुज़रा है जब तन्हाई भी महफिल सी लगती थी।
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कुछ ऐसा हुआ वाकया, बताऊँ क्या मैं यारो,
मुझे रास्ता मालूम न था, और मंजिल आ गई।
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अफ़सोस कि अहसास मुझे उस वक्त हुआ,
वापसी का रास्ता ही जब बंद हो चुका था।
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Monday, July 6, 2009
"टेड़ी बात"
न जाने मेरे ज़हन को क्यूँ, यही बात ठगती है।
तेरी हर अदा अलग सी, लगती है।
बंद होंटों से निकली हर बात मुझे रास आये,
हर आरज़ू तेरी नेक, लगती है।
वो तेरा दिल खोल हाय मुझे अपनाना,
नियत तेरी बड़ी साफ़, लगती है।
न जाने मेरे ज़हन को क्यूँ, यही बात ठगती है।
तेरी हर अदा, टेड़ी बात लगती है।
तेरी हर अदा अलग सी, लगती है।
बंद होंटों से निकली हर बात मुझे रास आये,
हर आरज़ू तेरी नेक, लगती है।
वो तेरा दिल खोल हाय मुझे अपनाना,
नियत तेरी बड़ी साफ़, लगती है।
न जाने मेरे ज़हन को क्यूँ, यही बात ठगती है।
तेरी हर अदा, टेड़ी बात लगती है।
Friday, July 3, 2009
बेबसी
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
वक्त रूबरू होके, मेरा मज़ाक उड़ा रहा है।
वक्त थम गया है लेकिन, मुझे चला रहा है।
मैं देख रहा हूँ लेकिन, सब तरफ़ अँधेरा है।
मैं जी रहा हूँ लेकिन, दिल जी नही रहा है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
आज साफ़ सबकुछ, पानी के मानिन्दा है।
जो था अपना वो भी आज, गैरों का तरफ़्गह है।
मैं चाहता हूँ भुलाना, भुला पा रहा नही हूँ।
आज चाहता हूँ मरना, मर पा रहा नही हूँ।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी ?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी ?
आज महफिल भी मुझे एक, विराना लग रहा है।
आज ख़ुद का जीना भी मुझे, आज़ाब लग रहा है।
हवा भी आज मेरे, ख़िलाफ़ चल रही है।
आज चारों तरफ़ मेरे, बेबसी ही बेबसी है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
वक्त रूबरू होके, मेरा मज़ाक उड़ा रहा है।
वक्त थम गया है लेकिन, मुझे चला रहा है।
मैं देख रहा हूँ लेकिन, सब तरफ़ अँधेरा है।
मैं जी रहा हूँ लेकिन, दिल जी नही रहा है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
आज साफ़ सबकुछ, पानी के मानिन्दा है।
जो था अपना वो भी आज, गैरों का तरफ़्गह है।
मैं चाहता हूँ भुलाना, भुला पा रहा नही हूँ।
आज चाहता हूँ मरना, मर पा रहा नही हूँ।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी ?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी ?
आज महफिल भी मुझे एक, विराना लग रहा है।
आज ख़ुद का जीना भी मुझे, आज़ाब लग रहा है।
हवा भी आज मेरे, ख़िलाफ़ चल रही है।
आज चारों तरफ़ मेरे, बेबसी ही बेबसी है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
Monday, June 29, 2009
काश
आज फिर एक चेहरा मुझे तंग कर रहा है।
नया कुछ भी नही है, सब कुछ पुराना है।
वही किताबों पर उसका नाम लिखना, फिर मिटा भी देना।
वही रातों में जागना, बिना बात के आंसू बहाना, बिना ग़म के पोंछ भी देना।
हर पल, हर घड़ी उसे याद करना।
उसे तकते रहना, पर नजरें चुराकर और उम्मीद करनी की वो समझ लेगा मेरी खामोशी को...
कि मेरे अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही पड़ेगी।
हसरत इस बात की, कि मेरी भटकती निगाह का जवाब आये...
कि मेरा तस्सव्वुर, हकीकत बन जाये।
फिर कई बार आइने के सामने खड़े होकर ख़ुद पर हँसना और पूछना, भला ऐसा भी होता है कहीं?
कि कहाँ मिलते हैं ज़माने में ऐसे चेहरे, जैसे होते हैं मेरे तस्सव्वुर में।
बावजूद इसके कि मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
मैं ये हसरत अपने दिल में समेटे हुए फिरता हूँ कि वो अपना ले मुझे...मैं जैसा भी हूँ।
पर काश ऐसा होता इस ज़माने में, काश ये ज़माना होता मेरे तस्सव्वुर जैसा,
जहाँ खामोश समझी जाती, न कि अल्फ़ाज़...
जहाँ चेहरे एक दूसरे को पहचानने कि कोशिश नही करते, बल्कि महसूस करते एक दूसरे को।
मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
पर आज फिर एक चेहरा मुझे तंग कर रहा है।
नया कुछ भी नही है, सब कुछ पुराना है।
वही किताबों पर उसका नाम लिखना, फिर मिटा भी देना।
वही रातों में जागना, बिना बात के आंसू बहाना, बिना ग़म के पोंछ भी देना।
हर पल, हर घड़ी उसे याद करना।
उसे तकते रहना, पर नजरें चुराकर और उम्मीद करनी की वो समझ लेगा मेरी खामोशी को...
कि मेरे अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही पड़ेगी।
हसरत इस बात की, कि मेरी भटकती निगाह का जवाब आये...
कि मेरा तस्सव्वुर, हकीकत बन जाये।
फिर कई बार आइने के सामने खड़े होकर ख़ुद पर हँसना और पूछना, भला ऐसा भी होता है कहीं?
कि कहाँ मिलते हैं ज़माने में ऐसे चेहरे, जैसे होते हैं मेरे तस्सव्वुर में।
बावजूद इसके कि मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
मैं ये हसरत अपने दिल में समेटे हुए फिरता हूँ कि वो अपना ले मुझे...मैं जैसा भी हूँ।
पर काश ऐसा होता इस ज़माने में, काश ये ज़माना होता मेरे तस्सव्वुर जैसा,
जहाँ खामोश समझी जाती, न कि अल्फ़ाज़...
जहाँ चेहरे एक दूसरे को पहचानने कि कोशिश नही करते, बल्कि महसूस करते एक दूसरे को।
मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
पर आज फिर एक चेहरा मुझे तंग कर रहा है।
Sunday, June 28, 2009
लो कर दी बस
लो कर दी बस...
लो कर दी बस, खाता हूँ कसम अब मह न पियूँगा।
महकदे चल के आयें दर मेरे, मैं आह न भरूंगा।
गुज़ारिश इतनी बस, जाम आखिरी खत्म करने दे।
न जाने दिल-ऐ-तीरगी में अब चराग़ कब जले।
लो कर दी बस...
रहता मैं नशे में जब, लगते थे सभी अपने।
दिल रहती थी रौनक, थे खुशनुमा सपने।
ज़माना तल्ख़, मेरी हस्ती अब तोड़-मरोड़ दे।
नशे मैं रहता था ऊपर, अब नीले अम्बर तले।
लो कर दी बस...
कबूली जबसे तेरी बात, रूह का चैन खो दिया।
हाल देख मेरा, सूख चुका आंसू भी रो दिया।
बोला यार ने है आज अर्शी मह छोड़ दे।
हयात-ओ-मौत हो जो भी, लग जाओ अब गले।
लो कर दी बस...
लो कर दी बस, खाता हूँ कसम अब मह न पियूँगा।
महकदे चल के आयें दर मेरे, मैं आह न भरूंगा।
गुज़ारिश इतनी बस, जाम आखिरी खत्म करने दे।
न जाने दिल-ऐ-तीरगी में अब चराग़ कब जले।
लो कर दी बस...
रहता मैं नशे में जब, लगते थे सभी अपने।
दिल रहती थी रौनक, थे खुशनुमा सपने।
ज़माना तल्ख़, मेरी हस्ती अब तोड़-मरोड़ दे।
नशे मैं रहता था ऊपर, अब नीले अम्बर तले।
लो कर दी बस...
कबूली जबसे तेरी बात, रूह का चैन खो दिया।
हाल देख मेरा, सूख चुका आंसू भी रो दिया।
बोला यार ने है आज अर्शी मह छोड़ दे।
हयात-ओ-मौत हो जो भी, लग जाओ अब गले।
लो कर दी बस...
Tuesday, March 10, 2009
मेरे ख़याल में...
यह कैसा मंज़र है मेरे ख़याल में बार - बार आता।
बड़ा पहचाना सा ख़याल है, पर ऐसा हुआ नही।
में एक मुसाफिर हूँ, किसी सफर में, मंजिल नही पता।
बोहत सुबह का समय है, सूरज अभी उगा नही।
मैं इस बैलगाड़ी में लेटा हूँ, ठण्ड का मौसाम है।
कम्बल ओढे हुए हूँ, हलकी सी सर्दी लग रही है।
यह शक़्स जो बैलगाडी चला रहा है, मेरी और मुड़के,
मुस्कराते हुए देखता है...मैं इससे नही जानता, पर यह मुझे जानता है।
हम किन्ही खेतों में बनी पग्ढन्ढिओन में से गुज़र रहे हैं।
चारों तरफ़ पंछी उढ़ रहे हैं, मेरे कानों में उनके चहकने की आवाज़ है...
शायद बोहत अर्से बाद मैं कुछ सोच नही रहा...बस देख रहा हूँ।
हर शह मेरे साथ देख रही है।
दूर दरगाह से किसी फ़कीर की मंद गाती हुई आवाज़,
फिज़ा में सुकून घोल रही है।
बैलों के गले मैं बंधी घंटियों की खनक मन्ज़र को और सुहाना कर रही हैं...
कोई भाग नही रहा , कहीं कोई तड़प नही।
हर शक्स...हर शह सुकून मैं है...मैं भी !
कोई किसी का इंतज़ार नही कर रहा...
कोई किसी वादे के पीछे नही भाग रहा।
हमने सारा दिन इस बरामदे मैं बैठकर,
लोगो के साथ चाय पीते, बातें करते गुज़ार दिया।
सारा दिन बारिश पड़ती रही...बस अभी अभी बंद हुई है।
फिज़ा मैं गीले पेडों और मिटटी की महक ने एक अजीब सा नशा फैला रखा है।
वो सामने लगे बरगद के पेड़ से टपकी बूँदें जब नीचे खड़े पानी मैं गिरती हैं,
एक अलग सी धुन बना जाती हैं।
शाम का समय है, रात होने को है।
मुझे अभी - अभी गाड़ीवाले ने आवाज़ लागाई । उसने गाड़ी को छत्त के,
अन्दर लालटेन जला दिया है...
मुझे चलने का इशारा कर रहा है।
और मैं फिर सफर में हूँ...कहीं जा रहा हूँ...मंजिल नही पता।
यह कैसा मन्ज़र है मेरे ख़याल में बार - बार आता।
बड़ा पहचाना सा ख़याल है, पर ऐसा हुआ नही।
में एक मुसाफिर हूँ, किसी सफर में, मंजिल नही पता।
बोहत सुबह का समय है, सूरज अभी उगा नही।
मैं इस बैलगाड़ी में लेटा हूँ, ठण्ड का मौसाम है।
कम्बल ओढे हुए हूँ, हलकी सी सर्दी लग रही है।
यह शक़्स जो बैलगाडी चला रहा है, मेरी और मुड़के,
मुस्कराते हुए देखता है...मैं इससे नही जानता, पर यह मुझे जानता है।
हम किन्ही खेतों में बनी पग्ढन्ढिओन में से गुज़र रहे हैं।
चारों तरफ़ पंछी उढ़ रहे हैं, मेरे कानों में उनके चहकने की आवाज़ है...
शायद बोहत अर्से बाद मैं कुछ सोच नही रहा...बस देख रहा हूँ।
हर शह मेरे साथ देख रही है।
दूर दरगाह से किसी फ़कीर की मंद गाती हुई आवाज़,
फिज़ा में सुकून घोल रही है।
बैलों के गले मैं बंधी घंटियों की खनक मन्ज़र को और सुहाना कर रही हैं...
कोई भाग नही रहा , कहीं कोई तड़प नही।
हर शक्स...हर शह सुकून मैं है...मैं भी !
कोई किसी का इंतज़ार नही कर रहा...
कोई किसी वादे के पीछे नही भाग रहा।
हमने सारा दिन इस बरामदे मैं बैठकर,
लोगो के साथ चाय पीते, बातें करते गुज़ार दिया।
सारा दिन बारिश पड़ती रही...बस अभी अभी बंद हुई है।
फिज़ा मैं गीले पेडों और मिटटी की महक ने एक अजीब सा नशा फैला रखा है।
वो सामने लगे बरगद के पेड़ से टपकी बूँदें जब नीचे खड़े पानी मैं गिरती हैं,
एक अलग सी धुन बना जाती हैं।
शाम का समय है, रात होने को है।
मुझे अभी - अभी गाड़ीवाले ने आवाज़ लागाई । उसने गाड़ी को छत्त के,
अन्दर लालटेन जला दिया है...
मुझे चलने का इशारा कर रहा है।
और मैं फिर सफर में हूँ...कहीं जा रहा हूँ...मंजिल नही पता।
यह कैसा मन्ज़र है मेरे ख़याल में बार - बार आता।
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