मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
इनके पीछे चलते मैं इस कब्रों के शहर में चला आया हूँ।
तुम कब से दफ़न हो यहाँ।
यहाँ सब कुछ मेरा है।
यह जगह, यहाँ के कारिंदे, यह कब्रें और कब्रों में बंद लाशें।
यहाँ तुम आज भी मेरे हो।
तुम्हारी हर बात, हर मुस्कान, हर आंसू-
जो कभी तुमने मुझे नज़र किये थे,
आज भी यादों के लिबास में दफन हैं यहाँ।
मेरी ज़र्खरीद हैं ये यादें...सिस्किओं से कीमत जो चुकाई है मैंने।
लड़खड़ाते गुज़रते, दिन जब रात की चौखट पे आता है,
जब रात बसर करने का फ़िक्र मुझे सताने लगता है।
जब नशा दर्द का सर से उतरने लगता है।
मैं इस कब्रिस्तान में सजी तेरी महफिल में चला आता हूँ।
बड़ा सकून है यहाँ। यहाँ आज भी तुम मेरे ही हो।
हर कब्र यहाँ की मैं हूँ, हर दफन लाश तुम।
हर लम्हा मुझमें समाये रहते हो तुम यहाँ।
मेरा राज चलता है इस कब्रों के शहर पर।
मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
Friday, August 21, 2009
Friday, August 14, 2009
सौदा
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
अंधेरे छा रहे है देख उन चरागों पर,
जलते थे जो देख चेहरा बस हसीन तेरा।
देख हर तरफ़ है धुआं ही छा रहा,
है जल रहा आज रंग था जो बेहतरीन तेरा।
खून मिट गया अब नज़र भी नही आता,
हाथ हो गया पर कैसे यूँ रंगीन तेरा।
लो देखते-देखते है क़यामत आ गई,
क्यूँ चेहरा ज़र्द, उड़ा रंग है नाज़नीन तेरा।
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
अंधेरे छा रहे है देख उन चरागों पर,
जलते थे जो देख चेहरा बस हसीन तेरा।
देख हर तरफ़ है धुआं ही छा रहा,
है जल रहा आज रंग था जो बेहतरीन तेरा।
खून मिट गया अब नज़र भी नही आता,
हाथ हो गया पर कैसे यूँ रंगीन तेरा।
लो देखते-देखते है क़यामत आ गई,
क्यूँ चेहरा ज़र्द, उड़ा रंग है नाज़नीन तेरा।
सौदा कर दिया जो साँसों ने ही साँस का,
जिंदगी होता नही मुझे अब यकीन तेरा।
Thursday, August 13, 2009
थोड़ी सी खुशी
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
दूर तक सुनाई पड़ती है बस चुप्पी ही,
मेरी भी आवाज़ कोई तो सुनी कर दे।
इस सन्नाटे में कोई मुझे भी पुकार ले,
चुभती धूप को कोई मद्धम चांदनी कर दे।
हर तरफ़ नज़र आते हैं बस वीराने ही,
ठहरे पल मेरे कोई अब रवानी कर दे।
बस एक बार कोई हाथ दे संभाल ले,
मेरी भी खुशी कोई एक बार सौगुनी कर दे।
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
दूर तक सुनाई पड़ती है बस चुप्पी ही,
मेरी भी आवाज़ कोई तो सुनी कर दे।
इस सन्नाटे में कोई मुझे भी पुकार ले,
चुभती धूप को कोई मद्धम चांदनी कर दे।
हर तरफ़ नज़र आते हैं बस वीराने ही,
ठहरे पल मेरे कोई अब रवानी कर दे।
बस एक बार कोई हाथ दे संभाल ले,
मेरी भी खुशी कोई एक बार सौगुनी कर दे।
मेरे ग़म में कोई थोड़ी सी खुशी भर दे,
कोई राहों में मेरे भी रौशनी कर दे।
उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मेरे साथ निगाहें जो मिलाई थी तुमने,
वो मंज़र निगाह भूल न पाये उसका क्या?
तुम मेरी बांहों में और मैं चाँद पर,
वो याद मेरे दिल से न जाये उसका क्या?
कितनी शामें जो बीताई थी साथ में,
वक्त तुम बिन गुज़र न पाये उसका क्या?
आशनाई तुमसे है बोहत महंगी पड़ी,
दिल मेरा अब धड़क न पाये उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
मेरे साथ निगाहें जो मिलाई थी तुमने,
वो मंज़र निगाह भूल न पाये उसका क्या?
तुम मेरी बांहों में और मैं चाँद पर,
वो याद मेरे दिल से न जाये उसका क्या?
कितनी शामें जो बीताई थी साथ में,
वक्त तुम बिन गुज़र न पाये उसका क्या?
आशनाई तुमसे है बोहत महंगी पड़ी,
दिल मेरा अब धड़क न पाये उसका क्या?
तुमने कह दिया कि मज़ाक था वो बस,
मुझे रातों रात नींद न आये उसका क्या?
जुगनी चली जालंधर
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली।
जुगनी कुड़ी बड़ी मतवाली,जैसे भरी प्रेम दी प्याली।
जुगनी ढोल दी है ढुग-ढुग,चलदे ट्रक्टर दी है टुक-टुक।
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, ओ रब्बा मेरेया जुगनी।
ओ वीर मेरेया वे जुगनी बह गई है,दिल सब दा खींच के ले गई है।
ओ जुगनी चली जालंधर, (जुगनी) जुगनी चली जालंधर।
जुगनी आ पहुँची जालंधर, खाते-पीते घर दे अन्दर,
जहाँ एक से एक सिकंदर, जुगनी अपनी मस्त क़लन्दर
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, (जुगनी) ओ रब्बा मेरेया ओ जुगनी,
वेखी वेखी सी लगदी, जुगनी सब दे दिल नू फब्दी है।
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली जालंधर।
जुगनी कुड़ी बड़ी मतवाली,जैसे भरी प्रेम दी प्याली।
जुगनी ढोल दी है ढुग-ढुग,चलदे ट्रक्टर दी है टुक-टुक।
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, ओ रब्बा मेरेया जुगनी।
ओ वीर मेरेया वे जुगनी बह गई है,दिल सब दा खींच के ले गई है।
ओ जुगनी चली जालंधर, (जुगनी) जुगनी चली जालंधर।
जुगनी आ पहुँची जालंधर, खाते-पीते घर दे अन्दर,
जहाँ एक से एक सिकंदर, जुगनी अपनी मस्त क़लन्दर
रब्बा मेरेया ओ जुगनी, (जुगनी) ओ रब्बा मेरेया ओ जुगनी,
वेखी वेखी सी लगदी, जुगनी सब दे दिल नू फब्दी है।
ओ जुगनी चली जालंदर, (जुगनी) नी जुगनी चली जालंधर।
Thursday, August 6, 2009
मैं कब सास बनूँगी
जय नारी, जय नारी, नारी नारी जय नारी।
मैं हूँ ऐसी नारी जो है अबला बेचारी,
जब से बनी हूँ सासू सोचा लाइफ होगी धांसू,
जो मेरे साथ हुआ है वो बहू के साथ करूंगी,
पर ये जो मेरी सासू देती है आँख में आंसू,
बोले बन नही सकती तू सास जब तक हूँ मैं तेरे पास।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बात मेरी तू मान गद्दी पे न दे ध्यान,
माना बनी हैं तू सास फ़िर भी सत्ता मेरे पास।
रहूंगी याद दिलाती मैं दिया हूँ तू है बाती,
पल्लू बाँध ले मेरी बात, तू बहू है मैं हूँ तेरी सास।
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
मैं हूँ ऐसी नारी जो है अबला बेचारी,
जब से बनी हूँ सासू सोचा लाइफ होगी धांसू,
जो मेरे साथ हुआ है वो बहू के साथ करूंगी,
पर ये जो मेरी सासू देती है आँख में आंसू,
बोले बन नही सकती तू सास जब तक हूँ मैं तेरे पास।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बात मेरी तू मान गद्दी पे न दे ध्यान,
माना बनी हैं तू सास फ़िर भी सत्ता मेरे पास।
रहूंगी याद दिलाती मैं दिया हूँ तू है बाती,
पल्लू बाँध ले मेरी बात, तू बहू है मैं हूँ तेरी सास।
रहूंगी - रहूंगी मैं तेरी सास रहूंगी।
बनूंगी - बनूंगी मैं कब सास बनूंगी?
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