Monday, June 29, 2009

काश

आज फिर एक चेहरा मुझे तंग कर रहा है।
नया कुछ भी नही है, सब कुछ पुराना है।
वही किताबों पर उसका नाम लिखना, फिर मिटा भी देना।
वही रातों में जागना, बिना बात के आंसू बहाना, बिना ग़म के पोंछ भी देना।
हर पल, हर घड़ी उसे याद करना।
उसे तकते रहना, पर नजरें चुराकर और उम्मीद करनी की वो समझ लेगा मेरी खामोशी को...
कि मेरे अल्फ़ाज़ों की ज़रूरत नही पड़ेगी।
हसरत इस बात की, कि मेरी भटकती निगाह का जवाब आये...
कि मेरा तस्सव्वुर, हकीकत बन जाये।
फिर कई बार आइने के सामने खड़े होकर ख़ुद पर हँसना और पूछना, भला ऐसा भी होता है कहीं?
कि कहाँ मिलते हैं ज़माने में ऐसे चेहरे, जैसे होते हैं मेरे तस्सव्वुर में।
बावजूद इसके कि मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
मैं ये हसरत अपने दिल में समेटे हुए फिरता हूँ कि वो अपना ले मुझे...मैं जैसा भी हूँ।
पर काश ऐसा होता इस ज़माने में, काश ये ज़माना होता मेरे तस्सव्वुर जैसा,
जहाँ खामोश समझी जाती, न कि अल्फ़ाज़...
जहाँ चेहरे एक दूसरे को पहचानने कि कोशिश नही करते, बल्कि महसूस करते एक दूसरे को।
मैं जानता हूँ यहाँ ऐसा नही होता...
पर आज फिर एक चेहरा मुझे तंग कर रहा है।

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