क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
वक्त रूबरू होके, मेरा मज़ाक उड़ा रहा है।
वक्त थम गया है लेकिन, मुझे चला रहा है।
मैं देख रहा हूँ लेकिन, सब तरफ़ अँधेरा है।
मैं जी रहा हूँ लेकिन, दिल जी नही रहा है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
आज साफ़ सबकुछ, पानी के मानिन्दा है।
जो था अपना वो भी आज, गैरों का तरफ़्गह है।
मैं चाहता हूँ भुलाना, भुला पा रहा नही हूँ।
आज चाहता हूँ मरना, मर पा रहा नही हूँ।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी ?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी ?
आज महफिल भी मुझे एक, विराना लग रहा है।
आज ख़ुद का जीना भी मुझे, आज़ाब लग रहा है।
हवा भी आज मेरे, ख़िलाफ़ चल रही है।
आज चारों तरफ़ मेरे, बेबसी ही बेबसी है।
क्या ये तय है की मुलाकात न हो पायेगी?
तेरी आवाज़ अब मुझ तक न आयेगी?
Friday, July 3, 2009
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