समय बीत गये, रातें गुज़र गई, वक्त निकल गये।
बात निकली उस वक्त की जो कभी था, और फ़िर...खो गया।
कई बार ऐसा लगा जैसे सब ठीक हो।
जैसे सब पहले जैसा हो, कुछ भी न बदला हो...पर ऐसा है नही।
वक्त बहता रहा, अर्से बीतते गये, टुकड़े बिखरते रहे।
लोग बदल गये, शायद मैं भी बदल गया।
कुछ अपनी सी लगने वाली आवाजें सुनाई पड़ी...
लगा जैसे अब भी कोई इन्तज़ार कर रहा है।
मुझे अभी भी चाहता है। पर काश...
रास्ते कुछ ज़्यादा नही बदले पर,
पर अब मंजिलों ने शायद अपनी जगह बदल ली है।
सन्नाटा बोहत हो चला है,
यह चुप्पी भी अच्छी लगने लगी है।
अब डर नही लगता...
मैं ख़ुद जो डर बन गया हूँ।
ज़िक्र निकला अफ़्सानो का तो मुझे अपनी कहानी याद आ गयी।
क्या सुहाना मन्ज़र था और फ़िर कुछ नही रहा।
सब ख़त्म हो गया। बचा तो सिर्फ़ अफ़सोस।
वैसे सुबह हो चली है।
फ़िर सवेरा होगा, फ़िर से वही लोग मिलेंगे।
कुछ अपना जतायेंगे और कुछ, खैर...
कुछ अच्छा समां गुज़र गया। रात बीत गयी।
सारे फ़िर से बेगाने हो गये।
Monday, July 13, 2009
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