Wednesday, July 22, 2009

ग़ज़ल

कई कुछ लिखता हूँ मैं फ़िर मिटाता हूँ,
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।

आओ कोई तो पूछो मेरे दिल का हाल मुझसे,
हाल-ऐ-दिल मैं दिखाया जाना चाहता हूँ।

बड़ा दे हाथ कोई दिल में कुछ जगह दे दे,
थोड़ा मैं भी अपनाया जाना चाहता हूँ।

न मारो पत्थर नफरत के चोट लगती है,
प्यार मैं भी जताया जाना चाहता हूँ।

चल यार दिल आज उस मुकाम को ढूंढे,
जहाँ ख़ुद को मैं पाया जाना चाहता हूँ।

कई कुछ लिखता हूँ मैं फ़िर मिटाता हूँ,
कोई सुन ले मैं सुनाया जाना चाहता हूँ।

2 comments:

  1. न मारो पत्थर नफरत के चोट लगती है,
    प्यार मैं भी जताया जाना चाहता हूँ।

    लाजवाब शेर हैं............

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  2. Naasva Saab zaranawaazi hai aapki.

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