Tuesday, July 7, 2009

चंद शेर

इसके साथ, कभी उसके साथ, कभी साथ-साथ, कभी दूर दूर,
ऐसे गुज़ारी जिंदगी, मैंने बेच बेच के।
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हाथ थामे है कोई साथ ले चला,
दिल धड़कती फिर भी तन्हाई है।
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तुम्हे पाने की तम्मना और न पाने का ग़म,
इन हादसों ने है मुझे शायर बना दिया।
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क्या गिला करूँ लोगों ने न की जो परवाह मेरी,
जब अपनों ने ही नज़रंदाज़ कर दिया मुझे।
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क्या जानोगे मिजाज़ फकीरों का,
इश्क जानते नही अगर क्या चीज़ है।
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हाथ तो बोहत बड़े मुझे बचाने को, लेकिन,
एक वो ही न था जो बचा सकता था दरअसल।
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करने आ गये लोग मुझसे हज़ारों शिकवे,
मेरी एक फरयाद न इन्हे पर सुनाई दी थी।
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इंतज़ार तो तेरा मैं अब भी कर रहा हूँ,
और बात है आँखों अब नज़र नही आता।
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वक्त का तकाज़ा है की महफिलें भी हैं वीरान सी लगने लगी,
बाकि दौर तो वो भी गुज़रा है जब तन्हाई भी महफिल सी लगती थी।
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कुछ ऐसा हुआ वाकया, बताऊँ क्या मैं यारो,
मुझे रास्ता मालूम न था, और मंजिल आ गई।
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अफ़सोस कि अहसास मुझे उस वक्त हुआ,
वापसी का रास्ता ही जब बंद हो चुका था।
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9 comments:

  1. लाजवाब शेर हैं ............ बहुत उम्दा

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  2. बहुत सुन्दर!!!!!!!

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  3. हाथ थामे है कोई साथ ले चला,
    दिल धड़कती फिर भी तन्हाई है।

    बस इस एक शेर में नया अंदाज़ और रवानगी नज़र आई...
    बाकि औसत..

    इसी अंदाज़ और रवानगी के और अश्‍आर महफ़िल लूट लेंगे...

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  4. Bahut sundar rachana..really its awesome...

    Regards..
    DevSangeet

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  5. originality in poetic lines is worth appreciable.

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  6. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

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  7. Naasva Saab, Albela Saab, Chandan Bhai, Rawatbhata Ji, Dev Bhai, Dr.Aditya, Rajindra Ji, main aap sab ka tahe dil se shukrguzar hoon jo aap ne apni zindgee ke kuch keemti pal mujh khaksaar ki kitaab padne main diyae. Aap sab se guzarish hai ki aate rahiaega, tanki is kitaab ke pane ko hava lagti rahe. Hoslaafzai ke liye ek bar phir app sab ka bohat shukriya.

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  8. Sangita ji bohat shukria apki hosla afzai ke liye.

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