Monday, June 14, 2010

छुते हैं बुलंदियां पँख लेकर परवाज़।
गुलों से होती है रंगत महक करती है शादाब।
पंछियों के डेरे से है रोनक- ऐ - बस्ती।
इप्तदा है अछी वाजिब होगा अंजाम।