Tuesday, July 28, 2009

पुरानी भड़ास

राह जिनकी ताकता रहा जिंदगी भर मैं,
वो देख कर भी मुझको अन्देखा कर गये।
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ऐ जिंदगी तेरी खोज में मैंने क्या-क्या सितम नही सहे,
मिली भी तो राह में कह दिया मैं वो नही, कोई और हूँ।
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यही किनारा नही,
परे हैं और जहाँ बोहत।
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क्या पूछोगे तुम क्या बतायेंगे हम,
बंद किताब है तुम इसे बंद ही रहने दो।
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वो पहुंचे जब, मैं रहा नही, मेरी क्या खता है इसमे,
इंतज़ार तो मैंने था सदियों तक किया।
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मान लो तुम बात मेरी मुझे और मत सताओ,
गर पलट गया तेरी हस्ती का पता भी न मिलेगा।
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हाथ में तो मेरे, कितने ही कतल थे,
हालात ने मेरे मगर मजबूर कर दिया।
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जानता हूँ कि बस के मेरे है नही ये बात,
फ़िर खामख्वाह दोखा क्यूँ मैं ख़ुद को दे रहा हूँ।
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यह गिले-शिकवे मुझसे मत किया करो तुम,
सोच-समझ की कुवत मुझमें बची नही है।
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पहचान चाहे नही मुझे मंजिल की,
यकीन है मगर रास्ता यही वो है।
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मेरी कब्र का पता तुम्हे कैसे कोई बताये,
मेरे घर का पता तो कभी पूछा नही किसी ने।
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आज किस्मत ने मेरी मुझे गिराया है वहाँ,
जहाँ रास्ता ही मुझे कोई नज़र नही आता।
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आग के बवंडर में चाहे घिर गया हूँ मैं,
दिल कहता है मुझे भी बचा लेगा कोई।
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ऐसी बात नही कि मालूम नही क्या होने वाला है,
धोखा खाने कि मगर मुझे आदत सी हो गई है।
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