Friday, August 21, 2009

कब्रों का शहर

मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।
इनके पीछे चलते मैं इस कब्रों के शहर में चला आया हूँ।
तुम कब से दफ़न हो यहाँ।
यहाँ सब कुछ मेरा है।
यह जगह, यहाँ के कारिंदे, यह कब्रें और कब्रों में बंद लाशें।
यहाँ तुम आज भी मेरे हो।
तुम्हारी हर बात, हर मुस्कान, हर आंसू-
जो कभी तुमने मुझे नज़र किये थे,
आज भी यादों के लिबास में दफन हैं यहाँ।
मेरी ज़र्खरीद हैं ये यादें...सिस्किओं से कीमत जो चुकाई है मैंने।
लड़खड़ाते गुज़रते, दिन जब रात की चौखट पे आता है,
जब रात बसर करने का फ़िक्र मुझे सताने लगता है।
जब नशा दर्द का सर से उतरने लगता है।
मैं इस कब्रिस्तान में सजी तेरी महफिल में चला आता हूँ।
बड़ा सकून है यहाँ। यहाँ आज भी तुम मेरे ही हो।
हर कब्र यहाँ की मैं हूँ, हर दफन लाश तुम।
हर लम्हा मुझमें समाये रहते हो तुम यहाँ।
मेरा राज चलता है इस कब्रों के शहर पर।
मैं कितनी दूर चला आया हूँ इन यादों के पीछे।

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