रेत के ख्वाब्, मौजों सी हसरतें
कुछ हाथ नहीं आता, सब बिखरता जा रहा है
मैं चलता जा रहा हूँ, घिसता जा रहा हूँ
मुझे राहों कि आदत होती जा रही है
बदलेगा मौसम, ये जानता हूँ मैं भी
क्यूँ मानता नहीं दिल, ये जानना चाहता हूँ
कुछ हाथ नहीं आता, सब बिखरता जा रहा है
मैं चलता जा रहा हूँ, घिसता जा रहा हूँ
मुझे राहों कि आदत होती जा रही है
बदलेगा मौसम, ये जानता हूँ मैं भी
क्यूँ मानता नहीं दिल, ये जानना चाहता हूँ
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